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Wednesday, December 9, 2009

ग़ज़ल (अहेमद फ़राज़)


दुःख फ़साना नहीं के तुझ से कहें
दिल भी माना नहीं के तुझ से कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझ से कहें
एक तो हर्फ़ आशना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझ से कहें
ऐ खुदा दर्दे दिल है बख्शीशे दोस्त
आब ओ दाना नहीं के तुझ से कहें