do_action( 'acm_tag', '728x90_leaderboard' );

Tuesday, August 29, 2017

غزل (ग़ज़ल)

الفت سے تیری پوچھا جب تنہائی کا سبب،
کہنے لگی کہ یاد بھی کرتے نہیں ہیں اب۔
ہمدم پر درد دینے کا الزام لگایا،
خود ٹوٹ کر بِکھرتی ہے تنہائیوں سے اب۔
وعدہ تھا یہ کہ ساتھ نہ چھوٹے گا اب کبھی،
وعدے پہ میرے خود کو سمیٹے ہوئے ہیں اب۔
وعدے پہ تو مِٹے یہ گوارا نہیں مجھے،
وعدہ تھا ساتھ جینے کا مرنا ہے ساتھ اب۔
محسن! وہ انتظار کی گھڑیاں ہیں گِن رہی،
تجھ کو وفا کا واسطہ، دوری مِٹا دے اب۔

محسن یاسین
مالیگاؤں،  مہاراشٹرا، ہند
9822269031


उल्फ़त से तेरी पूछा जब तन्हाई का सबब,
कहने लगी के याद भी करते नहीं है अब...
हमदम पर दर्द देने का इल्ज़ाम लगाया,
ख़ुद टूट कर बिखरती है तन्हाईयों से अब...
वादा था यह के साथ ना छूटे गा अब कभी,
वादे पे मेरे ख़ुद को समेटे हुए है अब...
वादे पे तू मिटे यह गवारा नहीं मुझे,
वादा था साथ जीने का मरना है साथ अब...
मोहसिन!  वह इन्तज़ार की घड़ियां है गिन रही,
तुझ को क़सम वफ़ा की, तू दूरी मिटा दे अब...

मोहसिन यासीन
मालेगांव, महाराष्ट्र, भारत
9822269031


No comments:

Post a Comment