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Tuesday, September 5, 2017

कविता

आज आया हूँ लौट कर फिर से,
कुछ घड़ी दूर होगया था मैं।

दूरियाँ थी मगर फिर उनके लिये,
एक एहसास बन गया था मैं।

कुछ थी मजबूरियाँ के मिल न सका,
वह समझते थे खो गया था मैं।

उन से रूठा नहीं था एक पल भी,
वह यह समझे ख़फ़ा ख़फ़ा था मैं।

अपनी रुसवाईयों के डर से ही,
इश्क़ से दूर हो गया था मैं।

किस ने आवाज़ दी मुझे फ़िर से,
फ़िर से उस जानिब बढ़ रहा था मैं।

रोक क़दमों को अब ठहर *मोहसिन*
ख़ुद को ही दिल में कह रहा था मैं।

✍🏻मोहसिन यासीन✍🏻

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